चंदेरी मालवा और बुंदेलखंड की सीमा पर बसा है. इस शहर का इतिहास 11वीं सदी से जुड़ा है, जब यह मध्य भारत का एक प्रमुख व्यापार केंद्र था. मालवा, मेवाड़, गुजरात के प्राचीन बंदरगाह और डक्कन इससे जुड़े हुए थे.
चंदेरी मध्य प्रदेश के अशोक नगर जिले में स्थित एक ऐतिहासिक नगर है. बुन्देलों और मालवा के सुल्तानों
की बनवाई कई इमारतें यहां देखी जा सकती है. इसका उल्लेख महाभारत में भी मिलता है. चंदेरी
बुन्देलखंडी शैली की साड़ियों के लिए काफी प्रसिद्ध है. पारंपरिक हस्तनिर्मित साड़ियों का यह एक
प्रसिद्ध केंद्र है.
की बनवाई कई इमारतें यहां देखी जा सकती है. इसका उल्लेख महाभारत में भी मिलता है. चंदेरी
बुन्देलखंडी शैली की साड़ियों के लिए काफी प्रसिद्ध है. पारंपरिक हस्तनिर्मित साड़ियों का यह एक
प्रसिद्ध केंद्र है.
चंदेरी |
चंदेरी को चित्तौड़ के राणा साँगा ने सुलतान महमूद खिलजी से जीतकर अपने अधिकार में कर लिया था।
लगभग सन् १५२७ में मेदिनीराय नाम के एक राजपूत सरदार ने, जब अवध को छोड़ सभी प्रदेशों पर
मुगल शासक बाबर का प्रभुत्व स्थापित हो चुका था, चंदेरी में अपनी शक्ति स्थापित की। फिर पूरनमल
जाट ने इसे जीता। अंत में शेरशाह ने आक्रमण किया। लंबे घेरे के बाद भी किला हाथ न आया तो संधि
प्रस्ताव किया जिसमें पूरनमल का सामान सहित सकुशल किला छोड़कर चले जाने का आश्वासन था।
किंतु नीचे उतर आने पर शेरशाह ने कत्लेआम की आज्ञा दी और भयंकर मारकाट के बाद किले को
जीत लिया।
लगभग सन् १५२७ में मेदिनीराय नाम के एक राजपूत सरदार ने, जब अवध को छोड़ सभी प्रदेशों पर
मुगल शासक बाबर का प्रभुत्व स्थापित हो चुका था, चंदेरी में अपनी शक्ति स्थापित की। फिर पूरनमल
जाट ने इसे जीता। अंत में शेरशाह ने आक्रमण किया। लंबे घेरे के बाद भी किला हाथ न आया तो संधि
प्रस्ताव किया जिसमें पूरनमल का सामान सहित सकुशल किला छोड़कर चले जाने का आश्वासन था।
किंतु नीचे उतर आने पर शेरशाह ने कत्लेआम की आज्ञा दी और भयंकर मारकाट के बाद किले को
जीत लिया।
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