कोशक महल

यह सरल पर भव्य इमारत, जो कि चंदेरी शहर से 4 किलोमीटर की दूरी पर इसागढ रोड पर स्थित है, को सन् 1445 ई. में एक जीत के स्मारक के रूप में बनाया गया था। इतिहासकार मोहम्मद कासिम ‘फरिश्ता’ ने अपने तारीख-ए-फरिश्ता में उल्लेख किया है कि यह महल मालवा के सुल्तान महमूद शाह खिलजी के द्वारा कालपी की लड़ाई में सुल्तान महमूद शा्रकी पर अपनी विजय की स्मृति में बनाया था।





यह भवन वर्गाकार है और पहली मंजिल के चारों पक्षों में से प्रत्येक के केंद्र में लंबे, धनुषाकार दरवाजे है। शुरू में इसकी परिकल्पना इसके मूल नाम, खुशक-ए-हफ्त मंज़िल या ‘सात मंजिलों वाला भवन’, के अनुरूप एक सात मंजिला संरचना के रूप में की गयी। वर्तमान में इसमें केवल तीन पूरी मंजिलें और चौथी का एक हिस्सा दिखाता है। क्या सात मंजिलों को कभी पूरा किया गया, इस पर कोई आम सहमति नहीं है। कुछ का दावा है कि ऊपरी मंजिलें समय के साथ ध्वस्त हो गई है, जबकि अन्य का मानना ​​है कि परियोजना कभी पूरा ही नहीं हो पाया था। एक किंवदंती यह है कि सुल्तान के स्मारक निर्माण के आदेश का असली कारण चंदेरी के लोगों को रोजगार प्रदान करना था। उस समय शहर के लोग कामकाज की गंभीर कमी का सामना कर रहे थे और कालपी में जीत के बहाने का उपयोग कर काम और वेतन के साथ लोगों को व्यस्त रखने के लिए इस परियोजना को शुरू किया गया।




ऐसा भी कहा जाता है कि जब एक बार पहली मंजिल को पूरा कर लिया गया तो बिल्डरों को दूसरी मंजिल तक भारी पत्थर की सिल्ली को ले जाने की समस्या का सामना करना पडा। इसके तहत पहली मंजिल को धूल से ढंक दिया गया ताकि एक ढलान बनायी जा सके जिस पर सिल्ली को लेकर चढ़ाई किया जा सकता था। प्रत्येक मंजिल का निर्माण इसी तरह किया गया और अंत में सारी धूल को साफ कर पूरे ढांचे को उजागर किया गया था।
महल के निर्माण में जिस पत्थर का प्रयोग किया गया वो फतेहाबाद के पास छियोली नदी में से निकालकर लाया गया था। इन पत्थर को हटाने के के परिणामस्वरूप दो बड़े जल निकायों, जो अब मलूखा और सूलतानिया तालाबों के रूप में जाने जाते है, का निर्माण हूआ।

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